दिल्ली की गलियों से निकलकर करोड़ों के ब्रांड का नाम बन जाना कोई आसान बात नहीं, लेकिन मुकेश शर्मा, जिन्हें आज लोग “Delhi Crorepati Bhallewala” के नाम से जानते हैं, उन्होंने ये कारनामा कर दिखाया। कभी ₹2 में दही भल्ले बेचने वाले मुकेश आज BMW कार में घूमते हैं और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।
सपनों की शुरुआत: संघर्ष से सफलता तक
मुकेश शर्मा का जन्म दिल्ली के एक गरीब परिवार में हुआ था। ना ऊँची शिक्षा थी, ना पैसे। हालात इतने खराब थे कि उन्हें स्कूल बीच में ही छोड़ना पड़ा। परिवार की ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए उन्होंने एक छोटा सा ठेला लगाया और ₹2 में दही भल्ले बेचना शुरू किया।
हर सुबह 4 बजे उठकर वह खुद मसाले तैयार करते, ताज़ा दही जमाते और सफाई का खास ध्यान रखते थे। उनकी यही मेहनत और ईमानदारी उनके स्वाद में दिखती थी। मुकेश का मानना था –
“जो खाना मैं खुद खा सकूं, वही अपने ग्राहक को दूंगा।”
स्वाद, सफाई और सादगी – उनकी सफलता की तीन चाबी
मुकेश ने कभी भी अपने खाने की क्वालिटी और हाइजीन से समझौता नहीं किया। उनका स्वाद इतना खास था कि धीरे-धीरे इलाके में उनकी पहचान बनने लगी। ग्राहकों की लाइनें लगने लगीं और लोग उनके भल्लों का स्वाद लेने दूर-दूर से आने लगे।
सोशल मीडिया से मिली पहचान, बना ब्रांड
मुकेश की किस्मत तब बदली जब एक फूड ब्लॉगर ने उनका वीडियो बनाया –
“₹2 वाले भल्लेवाले अब BMW चलाते हैं!”
ये वीडियो वायरल हो गया, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लाखों लोगों ने इसे देखा और शेयर किया। इसके बाद तो उनकी दुकान पर लोगों की भीड़ लगने लगी और मुकेश शर्मा एक डिजिटल सेलेब्रिटी बन गए।
आज का मुकाम: एक करोड़पति भल्लेवाले की पहचान
आज मुकेश ना सिर्फ BMW चलाते हैं, बल्कि उनका भल्ला ब्रांड बन चुका है। वे कई आउटलेट्स खोल चुके हैं और आने वाले समय में एक फ्रैंचाइज़ी मॉडल पर भी काम कर रहे हैं। लोग उन्हें “दिल्ली करोड़पति भल्लेवाला” के नाम से जानते हैं।
सफलता का राज – खुद मुकेश की जुबानी
“काम कोई भी छोटा नहीं होता, सोच बड़ी होनी चाहिए। अगर मेहनत में दम हो, तो किस्मत भी घुटने टेक देती है।”
उनकी सफलता के पीछे हैं –
- गुणवत्ता के प्रति समर्पण
- स्वाद और सफाई की प्रतिबद्धता
- ईमानदारी और मेहनत
- सोशल मीडिया का प्रभावी उपयोग
निष्कर्ष: प्रेरणा हर गली में मिल सकती है
मुकेश शर्मा की कहानी बताती है कि सपने बड़े हों तो रास्ते खुद बनते हैं। ₹2 से शुरू कर करोड़ों की पहचान बन जाना उनके जुनून और मेहनत की सच्ची मिसाल है। वह सिर्फ “भल्ले” नहीं बेचते थे, वो ईमानदारी, स्वाद और आत्मविश्वास परोसते थे – और यही उनकी सफलता की असली चाभी है।