झारखंड में दिल दहलाने वाली घटना: गरीबी के कारण दंपति ने एक महीने के बच्चे को 50,000 रुपये में बेचा

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मेदिनीनगर, झारखंड: झारखंड के पलामू जिले के लेस्लीगंज इलाके से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। गरीबी की मार झेल रहे एक दंपति ने अपने एक महीने के नवजात बेटे को मात्र 50,000 रुपये में बेच दिया। हालांकि, इस घटना की जानकारी मिलते ही झारखंड पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और बच्चे को सुरक्षित बचा लिया। इस घटना ने न केवल सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, बल्कि गरीबी और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की कमी को भी उजागर किया है।

क्या है पूरा मामला?

पलामू जिले के लेस्लीगंज इलाके में रहने वाले रामचंद्र राम और उनकी पत्नी पिंकी देवी बेहद गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। रामचंद्र ने बताया कि उनके पास न तो परिवार चलाने के लिए पर्याप्त पैसे थे और न ही पिंकी की प्रसव के बाद इलाज के लिए संसाधन। पिंकी की तबीयत बच्चे के जन्म के बाद से ही खराब थी, और इलाज के लिए पैसे की सख्त जरूरत थी। इस मजबूरी में दंपति ने अपने एक महीने के बेटे को पड़ोस के गांव के एक दंपति को 50,000 रुपये में बेच दिया।

लेस्लीगंज के सर्कल ऑफिसर सुनील कुमार सिंह ने बताया कि यह दंपति आर्थिक तंगी के कारण इतना बड़ा कदम उठाने को मजबूर हुआ। जैसे ही इस घटना की जानकारी प्रशासन को मिली, पलामू जिला प्रशासन ने तुरंत हस्तक्षेप किया। बच्चे को बेचने वाले दंपति को 20 किलो अनाज दिया गया और उन्हें विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत मदद देने की प्रक्रिया शुरू की गई।

मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान

इस मामले की गंभीरता को देखते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तुरंत संज्ञान लिया और पुलिस को बच्चे को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया। उनकी त्वरित कार्रवाई के कारण पुलिस ने बच्चे को सुरक्षित बचा लिया। यह घटना न केवल गरीबी की भयावहता को दर्शाती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि क्या सरकारी योजनाएं जरूरतमंद लोगों तक पहुंच पा रही हैं?

गरीबी: एक कड़वी सच्चाई

यह कोई पहली घटना नहीं है जब गरीबी के कारण माता-पिता अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर हुए हों। देश के कई हिस्सों में ऐसी घटनाएं समय-समय पर सामने आती रहती हैं। हाल के वर्षों में, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी ऐसी घटनाएं सुर्खियों में रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गरीबी और बेरोजगारी ऐसी समस्याएं हैं, जो लोगों को असहाय बना देती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता रंजन पांडा के अनुसार, “जीडीपी की वृद्धि का मतलब यह नहीं कि सभी को समान अवसर मिल रहे हैं। गरीबी के कारण लोग अपने बच्चों को बेचने जैसे कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं।”

समाज और सरकार की जिम्मेदारी

यह घटना समाज और सरकार दोनों के लिए एक चेतावनी है। एक ओर जहां गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता और रोजगार के अवसर प्रदान करने की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना भी जरूरी है। पलामू जिला प्रशासन ने इस दंपति को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन यह काफी नहीं है। देश भर में लाखों परिवार ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रहे हैं।

सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाएं, जैसे कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, मनरेगा, और आयुष्मान भारत, गरीबों के लिए बनाई गई हैं, लेकिन इनका लाभ कितने लोगों तक पहुंच रहा है, यह एक बड़ा सवाल है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि योजनाओं को लागू करने में और अधिक पारदर्शिता और प्रभावशीलता की जरूरत है।

मानव तस्करी का खतरा

इस तरह की घटनाएं मानव तस्करी जैसे संगीन अपराध को भी बढ़ावा देती हैं। कई बार गरीब परिवारों को बहला-फुसलाकर उनके बच्चों को बेचने के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसे मामलों में बच्चे गलत हाथों में पड़ सकते हैं, जिससे उनका भविष्य खतरे में पड़ जाता है। इस मामले में सौभाग्य से बच्चे को बचा लिया गया, लेकिन हर बार ऐसा संभव नहीं होता।

आगे की राह

इस घटना ने समाज को एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया है कि हमें अपने आसपास के लोगों की मदद के लिए क्या करना चाहिए। सामाजिक संगठनों, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), और स्थानीय प्रशासन को मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों। इसके लिए शिक्षा, जागरूकता, और आर्थिक सहायता जैसे कदम उठाए जाने चाहिए।

निष्कर्ष

झारखंड की यह घटना एक कड़वी सच्चाई को सामने लाती है कि गरीबी केवल आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय संकट भी है। यह समाज के हर वर्ग को यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने आसपास के लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं। सरकार, समाज, और हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम मिलकर ऐसी परिस्थितियों को खत्म करें, जहां कोई माता-पिता अपने बच्चे को बेचने के लिए मजबूर हो।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स, न्यूज़18

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